यूँ जहाँ तक बने चुप ही मैं रहता हूँ / महावीर उत्तरांचली

यूँ जहाँ तक बने चुप ही मैं रहता हूँ
कुछ जो कहना पड़े तो ग़ज़ल कहता हूँ

जो भी कहना हो काग़ज़ पे करके रक़म
फिर क़लम रखके ख़ामोश हो रहता हूँ

दर्ज़ होने लगे शे'र तारीख़ में
बात इस दौर की ख़ास मैं कहता हूँ

दोस्तो! जिन दिनों ज़िंदगी थी ग़ज़ल
ख़ुश था मै उन दिनों, अब नहीं रहता हूँ

ढूंढ़ते हो कहाँ मुझको ऐ दोस्तो
आबशारे-ग़ज़ल बनके मैं बहता हूँ

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