भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यूँ तिरे हुस्न की तस्वीर ग़ज़ल में आए / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यूँ तिरे हुस्न की तस्वीर ग़ज़ल में आए
जैसे बिल्क़ीस सुलेमाँ के महल में आए

जब्र से एक हुआ ज़ाएक़ा-ए-हिज्र-ओ-विसाल
अब कहाँ से वो मज़ा सब्र के फल में आए

ये भी आराइश-ए-हस्ती का तक़ाज़ा था कि हम
हल्क़ा-ए-फ़िक्र से मैदान-ए-अमल में आए

हर क़दम दस्त-ओ-गरेबाँ है यहाँ ख़ैर से शर
हम भी किस मारका-ए-जंग-ओ-जदल में आए

ज़िंदगी जिन के तसव्वुर से जिला पाती थी
हाए क्या लोग थे जो दाम-ए-अजल में आए