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यूँ तो करने को यहां कोशिशें हर शख्स ने कीं / शहरयार
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यूँ तो करने को यहां कोशिशें हर शख्स ने कीं
खेतियाँ दिल की सराबों से न सरसब्ज़ हुई
मेरी आवाज़ पे देता नहीं कोई आवाज़
शहर सन्नाटों के सैलाब की ज़द में तो नहीं
बे उफ़क़ आसमां भी धुंध में छिप जायेगा
चंद दिन और जो आंखें यूँ ही हैरान रहीं
जिस्म को आइने-रूह में देखा होता
तो ये दुनिया नज़र आती न कभी इतनी हसीं
तेज़ आँधी का करम हो तो निजात इनको हो
राख की क़ैद में चिंगारियां मुरझाने लगीं।