यूँ तो कहने को हम उदू भी नहीं
हाँ मगर उस से गुफ़्तुगू भी नहीं
वो तो ख़्वाबों का शाह-ज़ादा था
अब मगर उस की जुस्तुजू भी नहीं
वो जो इक आईना सा लगता है
सच तो ये है के रू-ब-रू भी नहीं
एक मुद्दत में ये हुआ मालूम
मैं वहाँ हूँ जहाँ के तू भी नहीं
एक बार उस सें मिल तो लो ‘सरवत’
है मगर इतना तुंद-ख़ू भी नहीं