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यूँ तो कहने को हम उदू भी नहीं / नूर जहाँ 'सरवत'

यूँ तो कहने को हम उदू भी नहीं
हाँ मगर उस से गुफ़्तुगू भी नहीं

वो तो ख़्वाबों का शाह-ज़ादा था
अब मगर उस की जुस्तुजू भी नहीं

वो जो इक आईना सा लगता है
सच तो ये है के रू-ब-रू भी नहीं

एक मुद्दत में ये हुआ मालूम
मैं वहाँ हूँ जहाँ के तू भी नहीं

एक बार उस सें मिल तो लो ‘सरवत’
है मगर इतना तुंद-ख़ू भी नहीं