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यूँ तो तुम छूने नहीं देते अपनी टेबल…. / वत्सला पाण्डेय
Kavita Kosh से
यूँ तो तुम छूने नहीं देते
अपनी टेबल….
आज मैंने भी तय कर लिया था….
तुम्हारी बिखरी फ़ाइलों को सेट करने का….
खोलते ही दराज़ कितने टूटे बटन
मेरे सामने झर से बिखर गए…
वो ब्लू शर्ट के कुछ स्पेशल से ….
अरे इसमे तो तुम्हारी
सारी शर्टों की निशानियाँ सजी है….
उफ़ ऑफ़िस जाते समय तुम्हारा चिल्लाना….
मेरा जल्दी से सुई धागा लेकर दौड़ना…
टांकना तुम्हारे टूटे बटन…
.
समझ गई कैसे तुम चुरा लेते हो
मेरे व्यस्तम समय से
खुद के लिए कुछ पल…
इन बटनों को तोड़कर….
सच में
तुम और तुम्हारा प्यार अबूझ है…