भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूँ तो मैं तूफ़ान से डरता रहा / बल्ली सिंह चीमा
Kavita Kosh से
यूँ तो मैं तूफ़ान से डरता रहा ।
काफ़िले के साथ पर चलता रहा ।
काश तुम मुझको अचानक ही मिलो,
मन ही मन मैं ये दुआ करता रहा ।
तू चरागाह बन सदा बिछती रही,
जानवर बन वो सदा चरता रहा ।
जीत होगी कि हार ये सोचा नहीं,
जंग मैं तेरे लिए करता रहा ।
तुझसे मिलकर मैं बड़ा हैरान हूँ,
तुझसे पहले किस तरह चलता रहा ।