भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूँ दिल में अरमान मचलते रहते हैं / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’
Kavita Kosh से
यूँ दिल में अरमान मचलते रहते हैं
जैसे कुछ तूफ़ान मचलते रहते हैं
चाँद नहीं मिलता है सबको फिर भी क्यूँ
कुछ बच्चे नादान मचलते रहते हैं
शिकवों से घबराकर दिल की बस्ती में
कुछ वादे अंजान मचलते रहते हैं
उसकी आँखों से मदिरा पी लेने को
सारे ही रिंदान मचलते रहते हैं
मेरी अना को सजदा करने की ख़ातिर
कितने ही ज़ीशान मचलते रहते हैं