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यूँ नक्श अपना छोड़ के जायेंगे एक दिन / सिया सचदेव

यूँ नक्श अपना छोड़ के जायेंगे एक दिन
दुनिया को हम भी याद तो आयेंगे एक दिन

ऐसे चराग़ ए इल्म जलायेंगे एक दिन
सारी जेहालतों को मिटायेंगे एक दिन

गुम हो गयी हयात कहाँ हमको क्या खबर
फिर भी कहीं से ढूंढ़ के लायेंगे एक दिन

उनको मलाल होगा कभी अपनी सोच पर
वहम ओ गुमाँ की पर्त हटायेंगे एक दिन

सूने से घर में लौट के आएँगी रौनक़ें
बच्चे जो मेरे लौट के आएँगे एक दिन

सच बोलने की ज़िद्द ही हमारा मिज़ाज है
झूठे का सर ज़मीं पे झुकाएँगे एक दिन

इंसानियत के दर्द का जो कर सके इलाज
हम ज़ख्म ए दिल उसी को दिखायेंगे एक दिन

रब ने अता किया है हमें शायरी का फ़न
पहचान अपनी खुद ही बनायेंगे एक दिन