भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूँ मधुर मुरली बजी घनश्याम की / बिन्दु जी
Kavita Kosh से
यूँ मधुर मुरली बजी घनश्याम की,
धूम घर-घर में मची घनश्याम की।
हो गया मुरली का आशिक सारा जहाँ,
मुरली आशिक हो गई घनश्याम की।
मुरली ने ही श्याम को दी राधिका,
विधि मिला दी दामिनी घनश्याम की।
मुरली रस का ‘बिन्दु’ बरसाती न जो,
शान घट जाती तभी घनश्याम की॥