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यूँ ही टूट जाते हैं तटबन्धन / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
आसमां से बरसती क़यामत
ठण्डी-ठण्डी बूँदों से सिहर जाते
प्रेम-पथ के राही
एक-दूसरे को संभालते बचाते
बाँहों में बन्द
कि छूने न पाए
एक भी कतरा बादल का
यूँ ही टकराती हैं आँखें
खो जाती हैं
छू लेती हैं
अंतस को
सुन लेतीं हर अनकही
कह देतीं हर अनसुनी
लहराने लगते हैं
पलकों के दुपट्टे
डगमगाने लगती है
सब्र की नाव
उठने लगते हैं
कई कई तूफ़ान ह्रदय में
यूँ ही टूट जाते हैं तटबन्धन
छूट जाती हैं सीमाएँ
और
निकल जाते हैं राही
अपने किनारों से बाहर