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यूँ ही ठहर ठहर के मैं रोता चला गया / 'नुशूर' वाहिदी
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यूँ ही ठहर ठहर के मैं रोता चला गया
मोती सँभल सँभल के पिरोता चला गया
साँचों में हुस्न ओ नूर के ढलता गया शबाब
सर-ता-क़दम शबाब ही होता चला गया
दुश्मन ने मेरी राह में काँटे बिछा दिए
और मैं उठा तो फूल ही बोता चला गया
हर नफ़स-ए-आरज़ू जो ब-उनवान-ए-होश था
जैसे कोई शराब से धोता चला गया
झूला झुला रही थी मुझे दिल की आरज़ू
सब जागते थे और में सोता चला गया
रंज ओ मलाल ओ कैफ़ ओ नशात ओ बहार-ए-उम्र
जो कुछ मुझे मिला उसे खोता चला गया
ग़म का ख़ामोश नग़मा-ए-दिल-सोज़ भी ‘नशुर’
इक कैफ़ सा रगों में समोता चला गया