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यूँ ही रहा तो खेती करने वाले नहीं मिलेंगे / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
यूँ ही रहा तो खेती करने वाले नहीं मिलेंगे
आगे चलकर गाँव में रहने वाले नहीं मिलेंगे
खेती करै वो भूखा सोये माल निठ्ल्ले चाभैं
किससे करूँ शिकायत सुनने वाले नहीं मिलेंगे
इस कच्ची मिट्टी की नमी सँजोकर रखना वरना
पौधे अपने आप पनपने वाले नहीं मिलेंगे
इन्सानियत अगर थोड़ी-सी बची रहे तो अच्छा
नही तो फिर दुख-दर्द समझने वाले नहीं मिलेंगे
जिधर उठाओ नज़र झूठ का डंका बजता यारो
इक दिन आयेगा सच कहने वाले नहीं मिलेंगे
जिसको देखो आसमान की बातें बस करता है
लगता है ज़मीन पर चलने वाले नहीं मिलेंगे
इंतिज़ार में नाहक पलकें आप बिछाये बैठे
ओह क़यामत तक ये मिलने वाले नहीं मिलेंगे