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यूं तो आई जिं़दगी में हर खुशी / उर्मिल सत्यभूषण

यूं तो आई जिं़दगी में हर खुशी
आंसुओं में वह मगर भीगी मिली

पत्थरों के शहर में पथरा चली
तैरती थी आँख में कल जो नमी

आस का चेहरा हुआ जब जब दुःखी
खेलने आई किरण इक चुलबुली

यह सदा कायम रहे व़ज्में सुखन
कुछ तो मिटती है यहाँ पर तिश्नगी

जो कहा मैंने वो तुमने सुन लिया
कौन जानेगा रही जो अनकही

भावना की मेरे दिल के गांव में
बारह मासों ही रही बहती नदी

जिं़दगी मुंदरी है उसमें जड़ दिया
उम्र का उर्मिल ने मोती कीमती।