यूं बीच राह छोड़कर तुम किधर गये
चुपके से मुंह मोड़कर तुम किधर गये
बतरस में डूबे चल रहे थे हम संग संग
यह सिलसिला ही छोड़कर तुम किधर गये
मैं मस्तियों की गोद में दुबकी थी, सो गई
झकझोर कर, झिंझोड़ कर तुम किधर गये
आकाश से ज़मीन पर क्यों पटक दिया
मेरा नसीब फोड़कर तुम किधर गये
उर्मिल अभी हरी भरी थी, ठूंठ बन गई
जीवन का स निचोड़ कर तुम किधर गये।