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यूटोपिया / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
दो आँखें देखेंगी मुझे डूबकर
चाहे मैं कितनी भी
कुरूप क्यों न हो जाऊँ।
डगमगाने पर
थाम लेंगे दो हाथ
और
मेरी कांपती देह को सहारा देंगे।
विरोधी भीड़ के बीच
दो पैर मेरे साथ चलेंगे।
मेरे फूट-फूट कर रोने को
दो कंधे
हमेशा आगे आएँगे।
मुझे समझने के लिए
कोई मस्तिष्क
पीछे हटकर
हृदय को आगे कर देगा।
और
उस हृदय में समाकर
मैं सुलझ जाऊँगी।
हाँ!
तुम हमेशा
मुझे प्रेम करोगे
इसी तरह
जैसे आज करते हो।