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यूरोप से बेहतर कौन जानता है / कर्णसिंह चौहान
Kavita Kosh से
यूरोप से बेहतर कौन जानता है ?
सूरज देवता है
उसकी अनगिनत बाहें
धरती और शरीर को कहां-कहां
परसती जगाती हैं ।
निष्प्राण अंकुर
आँख मिलते ही
जीवित हो जाते हैं
पीलिया मारे शरीर
हो जाते रक्तवर्ण
लहलहा उठता जीवन
सारा वन
यूरोप से बेहतर कौन जानता है ?
कितने खुशनसीब हैं
पूरब के देश
जहाँ खुली खिली है धूप
बिन पीड़ा फली हैं
तमाम अभिलाषाएं
करारी रोटी सी सिकी
ताम्रवर्णी देह
केवल एक छोटी सी ॠतु है
वसंत
उत्सव और हंसी की
उसी से जुड़ा है जीवन
साहित्य और दर्शन
कैसे जाने बारहमासे की
धड़कन
रुठे देवता के कोप की मार
सहते जन-जन
यूरोप से बेहतर कौन पहचानता है ?