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येसु! कहाँ हो तुम अब / रूचि भल्ला

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गोवा चर्च का देश है
इलाहाबाद में भी हैं चौदह गिरजे
अच्छे लगते हैं मुझे गिरजे मोमबत्तियाँ घंटियाँ
मरियम और यीशू से ज्यादा
मैंने चर्च से प्यार किया है
जब प्यार हुआ था चर्च से आठ बरस की थी मैं
अमर अकबर एंथनी पिक्चर के एंथनी से
प्यार हो गया था मुझको
उससे भी ज्यादा चर्च के फादर से
फादर से ज्यादा कन्फेशन बाॅक्स से प्यार कर बैठी थी
धर्मवीर भारती का उपन्यास गुनाहों का देवता तो नहीं पढ़ा था
फिर भी प्यार भरा गुनाह कर लेना चाहती थी
कन्फेशन बाॅक्स में जाकर गुनाह को
कबूल करना चाहती थी
प्यार भरे गुनाह मैं करती रही
कभी नहीं कह सकी फादर से कि अच्छा लगता था
वह हीरोहौंडा वाला मुसमलमान लड़का
कभी बोल नहीं सकी खुल कर कि
अपने से छोटी उम्र के ब्राह्मण उस लड़के की आवाज़ में जादू है
न ही कह सकी कभी धीमे से भी कि वह बंगाली लड़का
जो बहुत बड़ा है मुझसे काॅलेज के बाहर
खत लिये खड़ा रहता है मेरे लिए
हमउम्र वह लड़का जो पढ़ता था कक्षा दो से मेरे साथ
बारहवीं कक्षा में गुलाब रखने लगा था किताबों में
कभी नहीं कह सकी थी दिल की कोई बात फादर से
फादर से तो क्या मदर मेरी से भी नहीं कह सकी मैं
जानते रहे हैं सब कुछ यीशू पर मेरी ही तरह बेबस रहे

मैं पत्थर गिरजे में जाकर कभी अपनी
कभी यीशू की बेबसी देखती रही
प्रज्ञा भी जाती थी आजमगढ़ के एक चर्च में
नन्ही हथेलियों को जोड़ कर घुटने टेक बैठ जाती थी
मैं अब भी लगाती हूँ चर्च के फेरे
गोवा में देखे हैं मैंने तमाम गिरजे
आॅवर लेडी आॅफ़ इमैक्यूलेट कन्सेप्शन
चर्च को भी देखा है
कहीं नहीं दिखा मुझे वह चर्च
जिसके पीछे लगा है वह एक पेड़
जिसके नीचे संजीव कुमार शबाना आज़मी
से मिलना चाहते थे
हाथ थाम कर गाते थे .....
चाँद चुरा कर लाया हूँ तो फिर चल बैठें
चर्च के पीछे ....
मैं ईमानदारी से कबूल करती हूँ खुलेआम
पत्थर गिरजे के बाहर खड़े होकर
मैंने चर्च से ज्यादा एंथनी से प्यार किया है
मोमबत्तियाँ घंटियाँ फादर से प्यार किया है
कन्फेशन बाॅक्स से भी ज्यादा
चर्च के पीछे लगे उस एक पेड़ से किया है
चर्च के देश में जाकर तलाशा है
उस एक चर्च को
मुझे वहाँ गोवा मिला समन्दर सीपियाँ
काजू और मछली मिली
यीशू भी दिखे मरियम भी मिली
सेंट ज़ेवियर भी थे वहाँ
नहीं था तो बस वह एक चर्च
चर्च के देश में