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ये अखबार अब और किस काम आयेगा / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
ये अखबार अब और किस काम आयेगा,
चलो शराब में इसे आज नहलाया जाये.
ये काग़ज़ कलम बहस बेकार की बातें,
बस इंसान को सरे परचम चढाया जाये.
जब से गया है बेटा मायूस बाप फ़िक्र मंद है,
चलो उम्मीद का एक और चराग़ जलाया जाये.
टिमटिमाता इक दिया याद का जलता हुआ,
चलो इस ख़्वाब को एकबार फ़िर संवारा जाये.
घर में ही रहकर घर से जो जुदा हो गये,
ऐसी माँ से बच्चों को फ़िर मिलवाया जाये.
घर का चराग़ घर में रहे हो चार सू रौशनी,
"शम्स" ऐसी मशाल को फ़िर दहकाया जाये.