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ये अख़बार अब और किस काम आएगा / शमशाद इलाही अंसारी

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ये अखबार अब और किस काम आयेगा,
चलो शराब में इसे आज नहलाया जाए ।

ये काग़ज़ क़लम बहस बेकार की बातें,
बस इंसान को सरे परचम चढ़ाया जाए ।

जब से गया है बेटा मायूस बाप फ़िक्रमंद है,
चलो उम्मीद का एक और चराग़ जलाया जाए ।

टिमटिमाता इक दीया याद का जलता हुआ,
चलो इस ख़्वाब को एक बार फिर सँवारा जाए ।

घर में ही रहकर घर से जो जुदा हो गए,
ऐसी माँ से बच्चों को फिर मिलवाया जाए ।

घर का चराग़ घर में रहे हो चार सू रौशनी,
"शम्स" ऐसी मशाल को फिर दहकाया जाए ।

रचनाकाल : 13.05.2011