भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी / अदम गोंडवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन<ref>निर्णायक</ref> जंग थी ।
फिर कहाँ से बीच में मस्जिद औ' मंदर आ गए ।

जिनके चेह्रे पर लिखी थी जेल की ऊँची फ़सील<ref>दीवार</ref>,
रामनामी ओढ़कर संसद के अन्दर आ गए ।

देखना, सुनना व सच कहना इन्हें भाता नहीं,
कुर्सियों पर अब वही बापू के बंदर आ गए ।

कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र,
आजकल बाज़ार में उनके कलेण्डर आ गए ।

शब्दार्थ
<references/>