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ये आंखें / कर्णसिंह चौहान
Kavita Kosh से
ये आंखें
मुस्कराना भर जानती हैं ।
खुशी में
फूल बरसाती हैं
दुख में
सिकुड़कर गोल हो जाती हैं
अचंभे में
बच्चों सी तुतलाती हैं ।
ये आंखें
गाना भर जानती हैं ।
उमंग में
वसंत राग गुनगुनाती हैं
रुठन में
मोती टपकाती हैं
असमंजस में
नीरव गीत गाती हैं ।
ये आंखें
बुलाना भर जानती हैं ।
प्यार में
समुद्र की गहराई से
करुणा में
पहाड़ की ऊँचाई से
उलझन में
टिमटिमाते तारों से ।
कितनी गहरी
कितनी नीली
कितनी कोमल
कितनी पनीली हैं
ये आंखें ।
इनमें डूबो
इन्हें देखो
इन्हें छुओ
इनमें तैरो
कितनी रसीली हैं
ये आंखें ।