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ये आसमाँ अजीब हवा पर सवार है / पुरुषोत्तम प्रतीक

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ये आसमाँ अजीब हवा पर सवार है
अपनी ज़मीन है कि अभी तक उदार है

एकांत में प्रकाश सुहाया नहीं कभी
मत सोचिए, मुझे पसन्द अँधकार है

तेरा जमीर है कि चुका मत चुका इसे
इस दूध का उधार अनोखा उधार है

होगा ना तुम्हें कि तुम्हीं आसमान हो
लेकिन ज़मीं तमाम नशों का उतार है

किसके ख़िलाफ़ हाथ उठाएँ तुम्हीं कहो
हर शख़्स का ’प्रतीक’ मरों में शुमार है