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ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है/ असग़र गोण्डवी

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ये इश्क़ ने देखा है, ये अक़्ल से पिन्हाँ है
क़तरे में समन्दर है, ज़र्रे में बयाबाँ है

ऐ पैकर-ए-महबूबी मैं, किस से तुझे देखूँ
जिस ने तुझे देखा है, वो दीदा-ए-हैराँ है

सौ बार तेरा दामन, हाथों में मेरे आया
जब आँख खुली देखा, अपना ही गिरेबाँ है

ये हुस्न की मौजें हैं, या जोश-ए-तमन्ना है
उस शोख़ के होंठों पर, इक बर्क़-सी लरज़ाँ है

"असग़र" से मिले लेकिन, "असग़र" को नहीं देखा
अशआर में सुनते हैं, कुछ-कुछ वो नुमायाँ है