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ये उदासी और आहें / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
ये उदासी और आहें, छोड़ो बातें फिर कभी।
कोई पढ़ लेगा निगाहें, छोड़ो बातें फिर कभी।
किस जगह ठोकर मिली, उसको बता सकता नहीं,
कोई सुन लेगा कराहें, छोड़ो बातें फिर कभी।
वादियाँ हैं ख़ूबसूरत रास्ते भी हमवार हैं,
हर क़दम छूटती है बाँहें, छोड़ो बातें फिर कभी।
सुन चुके कितनी दफ़ा हैं, उनके चहरे पर ग़ज़ल,
रिश्ते, सम्बंधें, सलाहें, छोड़ो बातें फिर कभी।
रह गये आवाज़ देते, अपनों के इस शहर में,
ना मिली हरगिज़ पनाहें, छोड़ो बातें फिर कभी।
दो-दो नदियाँ बह रही हैं, स्वार्थ की परमार्थ की,
कौन किस में बहना चाहे, छोड़ो बातें फिर कभी।
राजनीति को भी समझना है ज़रूरी आजकल,
धर्म ईमां कैसी राहें, छोड़ो बातें फिर कभी।