भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बेकार की बातें करते हैं / शकील बँदायूनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बेकार की बातें करते हैं
पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं

नाहक है हवस के बंदों को नज़्ज़ारा-ए-फ़ितरत का दावा
आँखों में नहीं है बेताबी दीदार की बातें करते हैं

कहते हैं उन्हीं को दुश्मन्-ए-दिल नाम उन्हीं का नासेह भी
वो लोग जो रह कर साहिल पर मझधार की बातें करते हैं

पहुँचे हैं जो अपनी मंज़िल पर उन को तो नहीं कुछ नाज़-ए-सफ़र
चलने का जिन्हें मक़दूर नहीं रफ़्तार की बातें करते हैं