भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गयी / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गई
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई

एक मैं, एक तुम, एक दीवार थी
ज़िंदगी आधी-आधी बँटी रह गई

रात की भीगी-भीगी छतों की तरह
मेरी पलकों पे थोडी नमी रह गई

मैंने रोका नहीं वो चला भी गया
बेबसी दूर तक देखती रह गई

मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी
आते-आते इधर चाँदनी रह गई