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ये क़ुदरत भी तबाही की हुई शौक़ीन लगती है / अलका मिश्रा
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ये क़ुदरत भी तबाही की हुई शौक़ीन लगती है
अरे कलजुग! तेरी साजिश बहुत संगीन लगती है
अदब, तहज़ीब, रिश्तों की नहीं है फ़िक़्र अब कोई
ये दुनिया ख़ुद पसन्दी में हुई तल्लीन लगती है
सभी हैरान हैं इस ज़िन्दगी के स्वाद को लेकर
कभी खट्टी,कभी मीठी, कभी नमकीन लगती है
अंधेरे दिल के तहख़ाने में उनके क़ैद रहते हैं
वो जिनकी ज़िन्दगी अक़्सर बहुत रंगीन लगती है
ख़ुदा, मज़हब,ज़मीं, इंसान तक तक़सीम कर डाले
फ़ज़ा इस मुल्क़ की अब तो बहुत ग़मगीन लगती है