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ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का / रियाज़ ख़ैराबादी

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ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का
मिलें महशर में मुझ आसी का सदक़ा किबरियाई का

ये मुझ से सख़्त-जाँ पर शौक़ ख़ंजर आज़माई का
ख़ुदा-हाफ़िज़ मिरे क़ातिल तिरी नाज़ुक कलाई का

तुम अच्छे ग़ैर अच्छा ग़ैर की तक़दीर भी अच्छी
ये आख़िर ज़िक्र क्यूँ है मेरी क़िस्मत की बुराई का

वो क्या सोएँगे ग़ाफ़िल हो के शब भर मिरे पहलू में
उन्हें ये फ़िक्ऱ है निकले कोई पहलू लड़ाई का

इशारे पर तिरे चल कर ये लाए रंग मुश्किल है
अभी मोहताज है ख़ंजर तिरे दस्त-ए-हिनाई का

कोई क्या जन्नत में कि उस ने तूल खींचा है
क़यामत पर भी साया पड़ गया रोज़-ए-जुदाई का

बनाई क्या बुरी गत मय-कदे में बादा-नोशों ने
‘रियाज़’ आए थे कल जामा पहन कर पारसाई का