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ये किसकी तलाश थी मुझे / रजनी अनुरागी
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एक नशा मैं पीता रहा
एक नशा मुझे पीता रहा
जिन्दगी यूँ ही चलती रही
मैं यूँ ही जीता रहा
उफनती रहीं नदियाँ मेरे चारों ओर
और मैं दो बूँदों के लिए तरसता रहा
अपनी ही आवाज़ को
अनसुना करता रहा
और जाने किसकी आवाज़ को सुनता रहा
हँसता रहा दिल खोल के हमेशा
और अपने ही आँसुओं से बचता रहा
इस कदर चलता रहा
कि छूट गई हर मंजिल
और मै हर राह पे टूटता-बिखरता रहा
जाने क्या था जिसे पाने की चाहत में
शरे-ए-शाम-ओ-दरो-दीवार भटकता रहा
तोड़ता गया हर साँचे को मगर
हर बार अपने ही साँचे में ढलता रहा
इतना अपना हुआ अपना मैं
कि एक अदद अपने को तरसता रहा
ये किसकी तलाश थी मुझे
ये कौन मुझे तलाशता रहा