ये किसनै लूट मचाई मजदूर तेरी छान म्हं / मुनीश्वर देव
ये किसनै लूट मचाई मजदूर तेरी छान म्हं
पूंजीपति के कोठी बंगले ऊंचे महल अटारी क्यों
बांस टूट रहे फूंस नहीं ये टूटी छान तुम्हारी क्यों
और टूटी चारपाई, मजदूर तेरी छान म्हं
ठंडी हवा लगे छप्पर म्हं पोष माघ की सरदी है
जुती टूटी कुरता फटरया ऐसी तुम्हारी वरदी है
दस बंदे तीन रजाई, मजदूर तेरी छान म्हं
तेरे घर म्हं झूठे बर्तन थाळी तवा परात भी
और पेड़ कै नीचे आकर ठहरी तेरी बरात भी
कुड़की ले आए कसाई, मजदूर तेरी छान म्हं
पूंजीपति के दर्द पेट म्हं घर पै डाक्टर आता है
तेरा बाळक बीमार होकर तड़प तड़प मर जाता है
पर मिलती नहीं दवाई, मजदूर तेरी छान म्हं
बाबू जी का मोटर साईकल जब था रोड़ पै छूट रहा
और तू पत्नी सहित धूप म्हं सड़क पै रोड़ी कूट रहा
गाळी दे रहा अन्याई, मजदूर तेरी छान म्हं
पूंजीपति ले गया कमाई तेरी खून पसीने की
गोळी मार गर फोड़ी नहीं तूने तोंद कमीने की
भूखी पड़ी जज्चा लुगाई, मजदूर तेरी छान म्हं
पूंजीपति के मुरदे पर रेशम का कफन उढ़ाया जा
तेरा बाळक मरे तो नंगा पाणी बीच बहाया जा
भीष्म क्या करै कविताई, मजदूर तेरी छान म्हं