भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कुँजे किस देस को जातीं है जाने / सतीश बेदाग़
Kavita Kosh से
ये कूँजें किस देस को जाती हैं जाने
क्यूँ इस देस में यूँ घबराती हैं जाने
घरवालों के आगे बोल नहीं पातीं
क्यूँ ये झूठी क़समें खाती हैं जाने
रंग-बिरंगी हँसियाँ इक दो सालों में
किन गलियों में क़ैद हो जाती हैं जाने
इक पिंजरे में बंद है चिड़ियों का चम्बा
इक दूजी को क्या समझाती है जाने
इक रिफ़्यूजी कैम्प में नन्ही लड़की है
कौन-सी परियाँ उसे सुलाती हैं जाने
कुछ शेरों से हूकें-सी क्यूँ उठती हैं
कौन बिरहनें भीतर गाती हैं जाने