ये कुहरीली सुबह-शामें ये काली, लंबी यख राते
शिशिर न डाल दी झोली में कैसी कड़क सौगातें
ये तन्हाईयों का आलम रातभर सोने नहीं देता
कि यादों के लिहाफों में करें खुद से ही खुद बातें
ये ताने बाने सोचो के तसब्वुर चादरें बुनते
कभी चरखा मुहब्बत का चलाकर सूत हम कातें
किसी बच्चे की आंगन में ये क्या किलकारियां छनकी
हमारे प्यासे तन मन पर बरस गईं कैसी बरसाते
समाधि में न जा योगी, अभी हर ओर दहशत है
कि खूंरेज़ी ने तुमसे भी की होंगी तो मुलाकातें
सरापा प्यार तू उर्मिल तुझे इस दीन दुनिया में
अभी तो बांटनी शीरीं मुहब्बत की वो सौगातें।