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ये कैसी चली है हवा / सदानंद सुमन

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दिख रहा जो दृश्य सामने
नहीं है वह ठीक वैसा ही
जैसा कि पड़ रहा दिखाई

प्रायोजित है यह दृश्य
सजाया गया है आकर्षक अंदाज में ऐसा कि
लगता सबको मोहक-मनभावन

जमा हो रही भीड़
बेतहाशा दौड़ रहे
उधर ही लोग-

इस चकाचौंध के पीछे
छिप रही वे तमाम चीजें
जिनसे रिश्ता था हमारा
बहुत गहरा

ये कैसी चली है हवा इन दिनों कि
जिनकी जड़े नहीं, पनप रहे
और
जिनकी धँसी थी बहुत गहरी,
उखड़ रहे!