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ये कैसे दिन आये / नीरजा हेमेन्द्र

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शहर में त्योहार है, ये कैसे दिन आए।
लिपे पुते घर-बार हैं, ये कैसे दिन आए।
ऋतु ले रही अंगड़ाई बदली-सी है छाई,
पड़ने लगी फुहार है ये कैसे दिन आए।
पशु-पक्षी, जीव-जन्तु सब हो रहे उल्लसित,
मानव हृदय भी खुशगवार है ये कैसे दिन आए।
सड़कों में पार्कों में बढ़ रही चहल-पहल,
भरे-भरे बाजार हैं ये कैसे दिन आए ।
कृषक भी उल्लसित हो रहे खेतों में,
हरा-भरा कारोबार है ये कैसे दिन आए।
इन दिनों की खुशियाँ हम भर लें हृदय में,
ये दिन तो बस चार हैं ये कैसे दिन आए