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ये कौन सी प्रकृति है? / राहुल कुमार 'देवव्रत'

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ये कौन-सी प्रकृति है?

जेठ के ताप को धोता रहा है पानी
अनादि

ये कोरे शोर
और घड़ी भर रोशनी
नाद बजे कि चिहुंके

गौरैय्यों का झुंड बैठा है पंक्तिबद्ध शाख पर
खला को निहारती
ये सस्मित खामोश आंखें

हा! ये कौन भरता रहता है
बुनियाद के कणों में कंपन
लंबी तपिश से झुलसी
ये मिट्टी गीला हुआ चाहती है

नामालूम कितनी ही पीड़ाएँ
सोख जाता है सावन

यहाँ तपते जेठ को अषाढ़ न मिले
निगोड़ी धरती लावा बनने को तुली जाती है

बादल अब के फिर न बरसेंगे
ये मिट्टी गीली तो न होगी