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ये कौन हवाओं में ज़हर घोल रहा है / बी. आर. विप्लवी

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ये कौन हवाओं में ज़हर घोल रहा है
सब जानते हैं कोई नहीं बोल रहा है

बाज़ार कि शर्तों पे ही ले जाएगा शायद
वो आँखों ही आँखों में मुझे तोल रहा है

मर्दों की नज़र में तो वो कलयुग हो कि सतयुग
औरत के हसीं जिस्म का भूगोल रहा है

तू ही न समझ पाए कमी तेरी है वरना
दरवेश की सूरत में ख़ुदा बोल रहा है

जो ख़ुद को बचा ले गया दुनिया की हवस से
इस दौर में वह शख़्स ही अनमोल रहा है