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ये घातों पे घातें देखो/वीरेन्द्र खरे अकेला
Kavita Kosh से
ये घातों पर घातें देखो
क़िस्मत की सौगातें देखो
दिन अँधियारों में डूबे हैं
उजली उजली रातें देखो
फ़सलों के पक जाने पर ये
बेमौसम बरसातें देखो
धरती को जन्नत कर देंगे
मक्कारों की बातें देखो
पीठों पर कोड़े थमते ही
पेटों पर ये लातें देखो
तनहाई हँस कर कहती है
यादों की बारातें देखो
सौ सौ ख़्वाबों को पाले हैं
आँखों की औक़ातें देखो
हमको सब इंसान बराबर
तुम ही जातें-पाँतें देखो
ग़ज़लें, मुक्तक, गीत रूबाई
दर्दों की सौगातें देखो