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ये ज़फ़ा-ए-ग़म का चारा / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा, वो नजाते-दिल का आलम
तेर हुस्न दस्त-ए-ईसा, तेरी याद रू-ए-मरीयम
दिल-ओ-जां फ़िदा-ए-राहें, कभी आ के देख हमदम
सरे-कू-ए-दिलफ़िगारां, शबे आरज़ू का आलम
तेरी दीद के सिवा है, तेरे शौक में बहारां
वो ज़मीं जहां गिरी है, तेरी गेसूओं की शबनम
ये अजब क़यामतें हैं, तेरी रहगुज़र से गुज़रा
न हुआ कि मर मिटे हम, न हुआ कि जी उठे हम
लो सुनी गयी हमारी, युं फिरे हैं दिन कि फिर से
वही गोशा-ए-क़फ़स है, वही फ़स्ले-गुल का आलम