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ये ज़िन्दगी का मुक़द्दर है क्या किया जाये / बुनियाद हुसैन ज़हीन

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ये ज़िन्दगी का मुक़द्दर है क्या किया जाए
कज़ा का वक़्त मुक़र्रर है क्या किया जाए

हर इक निगाह के अंदर है क्या किया जाए
बहुत डरावना मंज़र है क्या किया जाए

हसीन से भी हसींतर है क्या किया जाए
तेरे ख़्याल का पैकर है क्या किया जाए

हर एक शख़्स के दिल में है ख़्वाहिशों का हुजूम
तलब सभी की बराबर है क्या किया जाए

ये जान जिस्म से हो सकती है जुदा लेकिन
वो मेरी रूह के अंदर है क्या किया जाए

वो जिसके नाम से बदनाम मैं हुआ था कभी
फिर उसका नाम ज़बाँ पर है क्या किया जाए

वो ज़ीस्त मैं जिसे सहरा समझ रहा था ज़हीन
मुसीबतों का समंदर है क्या किया जाए