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ये जो अपनी जुबां पे ताले हैं / उर्मिल सत्यभूषण

ये जो अपनी जुबां पे ताले हैं
इक न इक रोज़ खुलने वाले हैं

नागर, फणियर, करैत, चितकबरे
सांप ये सारे उनके पाले हैं

रूप गोरा तो इक छलावा है
वैसे मन के वो खूब काले हैं

धूल चाटेंगे देखना इक दिन
उसने जो जी हजूर पाले हैं

आप बुनते हैं आप फंसते हैं
लोग ये मकड़ियों के जाले हैं

हम निकालेंगे तोड़कर ताले
कै़द उर्मिल, जहां उजाले हैं।