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ये जो अमरित है इसे बोलो जहर कैसे कहूँ / अमरेन्द्र
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ये जो अमरित है इसे बोलो जहर कैसे कहूँ
साफ दिखता है अलिफ जेरो जबर कैसे कहूँ
कह दिया सारा जुबां से जो कहा था उसने
उसकीे आँखों से जो मिलती है खबर कैसे कहूँ
रंग मिलता हो अगर दो का तो दो एक नहीं
चाँदनी रात को बोलो मैं सहर कैसे कहूँ
जिन्दगी से था परेशां दी खुशी मौत ने है
ये तो है इसकी हुनर उसकी हुनर कैसे कहूँ
कौन बचकर यहाँ से निकला तेरी उलफत में
जानता हूँ मैं, भँवर है ये, भँवर कैसे कहूँ
लोग इस गाँव में पेड़ों के तले रहते हैं
इनको घर चाहिए ये बात मगर कैसे कहूँ
होश बाकी ही नहीं रहता है कुछ कहने को
हाय अमरेन्द्र की गजलों का असर कैसे कहूँ।