भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये जो ठण्डी हवा के झोंके हैं / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
ये जो ठण्डी हवा के झोंके हैं ।
आपकी याद के झरोखे हैं ।।
रंग अच्छे, बुरे नहीं होते,
सारे अपनी नज़र के धोखे हैं ।
देख लेते हैं देखने वाले,
देखने के हज़ार मौक़े हैं ।
बात दिल की ज़ुबाँ पै लाने के,
उनके अन्दाज़ ही अनोखे हैं ।
कुछ न कुछ तो सुगम हुआ उनको,
रात भर नींद में वो चौंके हैं ।
30-01-2015