भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये जो दु:ख दर्द की कहानी है / सुशील साहिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये जो दु:ख दर्द की कहानी है
सब मुहब्बत की मेहरबानी है

एक मुद्दत से सुनते आया हूँ
चार दिन की ही ज़िन्दगानी है

ख़त्म दुनिया अभी नहीं होगी
आज भी कुछ नदी में पानी है

मुझसे तहज़ीब मत अलग कीजे
बाप दादा कि यह निशानी है

सिर्फ इक बात तुमसे है कहनी
तुमसे इक बात बस छुपानी है

फन उठाये खड़ा बुढ़ापा है
आजकल ख़ौफ़ में जवानी है