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ये जो रुतबा रुआब वाले हैं / महेश कटारे सुगम
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ये जो रुतबा रुआब वाले हैं ।
ज़ुल्म मुर्गा शराब वाले हैं ।
भूख की इनसे बात मत करना,
ये तो काजू-कबाब वाले हैं ।
अस्ल चेहरे छुपाए रखते हैं,
सब के सब ही नकाब वाले हैं ।
रब्त रिश्तों का कैसे समझेंगे,
ये तो ताज़ा गुलाब वाले हैं ।
वक़्त का लफ्ज़-लफ्ज़ पढ़ते जो,
ज़िन्दगी की क़िताब वाले हैं ।
तीरगी उनको छू नहीं सकती,
जो सुगम आफ़ताब वाले हैं ।