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ये तमाशा भी अजबतर देखा / ज्ञान प्रकाश विवेक
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ये तमाशा भी अजबतर देखा
बर्फ़ पे धूप का बिस्तर देखा
लौट कर सारे सिपाही ख़ुश थे
सिर्फ़ ग़मगीन सिकंदर देखा
सेठ साहब ने ठहाके फेंके
मुफ़लिसों ने उन्हें चुन कर देखा
खोटे सिक्के की मिली भीख उसे
एक अंधे का मुकद्दर देखा
एक तिनके में खड़ा था जंगल
एक आँसू में समन्दर देखा
अजनबी शहर मेम इक बच्चे ने
जाते-जाते मुझे हँसकर देखा
ज़िन्दगी ! तू बड़ी मुश्किल थी मगर
तुझको हर हाल में जी कर देखा.