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ये ताज तुम्हारा न होगा / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
ये ताज तुम्हारा न होगा, ये तख्त तुम्हारा न होगा
लूटी हुई जागीर1 हमारी, धाख तुम्हारा न होगा
ज़ुल्म-जबर अन्याय दमन की, हुकूमत मिट जाएगी
लूट दमन के शोषण की, दीवारें गिरती जायेंगी
मेहनतकश मजदूरों की अब, रात घनेरी न होगी
हम आज बताएंगे तुमको, अब बूढ़ा शेर जवां होगा
फिर जाति तुम्हारी न होगी, औ’ वर्ण तुम्हारा न होगा
हमने ठानी है अब तो, वर्चस्व तुम्हारा न होगा
शोषण का इतिहास भर, क्या खूब चली मनमानी है
जिंदा जलते इंसानों से, भरी पड़ी कहानी है
बहती आंखे भूखे पेट, जनता यहाँ बेहाल रही
अब हड़पी गई ज़मीनों का, दस्तावेज निकाला जाएगा
फिर बेघर और लाचार कोई, जमींदार नहीं होगा
ये ताज तुम्हारा न होगा, ये तख्त तुम्हारा न होगा