भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये दल / रामदरश मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या-क्या छोड़ दूँ
अखबार पढ़ना छोड़ दूँ
टी.वी. देखना छोड़ दूँ
पढ़ता हूँ, देखता हूँ
विविध राजनीतिक दलों के बीच
घोर शब्द-संग्राम छिड़ा हुआ है
उनके गर्जन-तर्जन से मंच काँप रहे हैं
दिशाएँ हिल रही हैं
आश्चर्य है एक दल को
दूसरे दल के किसी कार्य में
अच्छाई दिखाई ही नहीं पड़ती
पड़ती भी है तो
वह उसका श्रेय स्वयं लेना चाहता है

जनता ने अपने जिस समय को
कर्म-सौन्दर्य से भरने के लिए
इन्हें राजधानी भेजा था
उसे ये भयानक तू-तू मैं-मैं से
अत्यंत कुरूप बना रहे हैं
लोग विवश होकर देख रहे हैं यह सब
लेकिन अब वे जाग चुके हैं
और मन ही मन कुछ फैसला कर रहे हैं।
-8.7.2014