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ये दिन आए / श्यामसुन्दर घोष
Kavita Kosh से
ये दिन आए ।
धूप करूँ नीलाम
न कोई बोली बोले,
आस-पास सूना-सूना
सन्नाटा डोले,
हवा हाँक दे,
कोई नहीं तनिक पतियाए ।
रंग-बिरंगे फूलों का
बाज़ार लगाऊँ,
और शाम तक कुछ न
बेच पाऊँ, पछताऊँ
देखे दुनिया,
ताना मारे हँसी उड़ाए ।
अब गीतों के होठों-कंठों
बसी उदासी,
सपने कवाँरे ही घर छोड़
हुए संन्यासी,
युग बीते
कलियों पर नहीं मधुप मँडराए ।
ये दिन आए ।