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ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है / आसिफ़ 'रज़ा'

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ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है
तेरा मिलना भी मुझ को खल रहा है

जिसे मैं ने किया था बे-ख़ुदी में
जबीं पर अब वो सजदा जल रहा है

मुझे मत दो मुबारक-बाद-ए-हस्ती
किसी का है ये साया चल रहा है

सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से
बरसता दूर इक बादल रहा है

फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम
अभी तक हाथ यज़दाँ मल रहा है

दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है
जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है