भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये दुख के दिन काटे हैं जिसने / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
ये दुख के दिन
काटे हैं जिसने
गिन गिनकर
पल-छिन, तिन-तिन।
आँसू की लड़ के मोती के
हार पिरोये,
गले डालकर प्रियतम के
लखने को शशिमुख
दुःखनिशा में
उज्ज्वल अमलिन।